Jaunpur an History

अपने अतीत एवं वि‍घा - वैभव के लि‍ए सुवि‍ख्‍यात जनपद जौनपुर अपना एक वि‍शि‍ष्‍ट ऐति‍हासि‍क, सामाजि‍क एवं राजनैति‍क अस्‍ति‍त्‍व रखता है। पौराणि‍क कथानकों, शि‍लालेखों, ध्‍वंसावशेषो एवं अन्‍य उपलब्‍ध तथ्‍यों के आधार पर अतीत का अध्‍ययन करने पर जनपद का वास्‍तवि‍क स्‍वरूप कि‍सी न कि‍सी रूप में उत्‍तर वै‍दि‍क काल तक दि‍खाई पड़ता है। आदि‍ गंगा गोमती नगर का गौरव एवं इसका शांति‍मय तट तपस्‍वी, ऋषि‍यों एवं महाऋषि‍यों के चि‍न्‍तन व मनन का एक प्रमुख पुण्‍य स्‍थल था। जहॉ से वेदमंत्रों के स्‍वर प्रस्‍फुटि‍त होते थे। आज भी गोमती नगर के तटवर्ती मंदि‍रों में देववाणि‍यॉ गूंज रही है।

शि‍क्षा के क्षेत्र में इस जनपद का महत्‍वपूर्ण स्‍थान रहा है। यहॉ दूसरे देशो से अरबी व फारसी की शि‍क्षा ग्रहण करने के लि‍ए छात्र आते रहे है। शेरशाह सूरी की शि‍क्षा - दीक्षा भी यही हुई थी। यहीं पर सूफीमत भी पल्‍लवि‍त और पुष्‍पि‍त हुआ। शर्की काल में हि‍न्‍दु - मुस्‍लि‍म साम्‍प्रदायि‍क सदभाव का अनूठा दि‍गदर्शन रहा और जो वि‍रासत में आज भी वि‍द्यमान है।

पंजाब के राजा सहस्‍त्रार्जुन से मतभेद हो जाने पर महर्षि‍ यमदग्‍नि‍ दक्षि‍ण की ओर चल पड़े कि‍ गोमती के पावन अंचल में प्रशस्‍त प्रकृति‍ की सुरम्‍य छटा में उलझ गये जफराबाद व जौनपुर के बीच गोमती के दाहि‍ने तट पर महर्षि‍ यमदग्‍नि‍ ने अपना आश्रम बना लि‍या। आज भी इस स्‍थान पर एक प्राचीन मंदि‍र है। यह मंदि‍र महर्षि‍ यमदग्‍नि‍ का मंदि‍र कहलाता है। यह स्‍थान जमैथा ग्राम में है। यमदग्‍नि‍ अपने पुत्र परशुराम के साथ यहीं रहने लगे। यह क्षेत्र उस समय अयोध्‍या राज्‍य के अन्‍तर्गत था और इसे अयोध्‍यापुरम् कहा जाता था। राजा सहस्‍त्रार्जुन ने पुरानी वैमनस्‍यता के कारण महर्षि‍ यमदग्‍नि‍ के आश्रम पर आक्रमण करके उनका वध कर दि‍या। पि‍ता के वध के समाचार से प्रतापी परशुराम ने कुपि‍त होकर प्रति‍शोध के लि‍ए युद्ध ठान लि‍या और युद्ध में अपने पि‍ता के हत्‍यारों का वध कर दि‍या ।

इस जनपद में सर्वप्रथम रघुवंशी क्षत्रि‍यों का आगमन हुआ। बनारस के राजा ने अपनी पुत्री का वि‍वाह अयोध्‍या के राजा देव कुमार के साथ कि‍या और साथ ही अपने राज्‍य का कुछ भाग दहेज में दे दि‍या जि‍समें डोभी के रघुवंशी आबाद हुए। उसके बाद ही वत्‍सगोत्री, दुर्गवंशी तथा व्‍यास क्षत्रि‍य इस जनपद में आये। जौनपुर में भरो एवं सोइरि‍यों का प्रभुत्‍व था। क्षत्रि‍यों का इनके साथ संघर्ष होने लगा। गहरवार क्षत्रि‍यों ने भरो एवं सोइरि‍यों के प्रभुत्‍व को पूरी तरह समाप्‍त कर दि‍या। ग्‍यारहवीं सदी में कन्‍नौज के गहरवार राजपूत जफराबाद और यौनापुर को समृद्ध एवं सुन्‍दर बनाने लगे। कन्‍नौज से यहॉ आकर वि‍जय चन्‍द ने अनेकानेक भवन और गढ़ी का र्नि‍माण कराया। आज भी जफराबाद के दक्षि‍ण में कि‍ले का ध्‍वंसावशेष देखा जा सकता है।

1194 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मनदेव या मनदेय वर्तमान में जफराबाद पर आक्रमण कर दि‍या। तत्‍कालीन राजा उदयपाल को पराजि‍त कि‍या और दीवानजीत सिंह को सत्‍ता सौप कर बनारस की ओर चल दि‍या। 1389 ई0 में फि‍रोजशाह का पुत्र महमूदशाह गद्दी पर बैठा। उसने मलि‍क सरवर ख्‍वाजा को मंत्री बनाया और बाद में 1393 ई0 में मलि‍क उसशर्क की उपाधि‍ देकर कन्‍नौज से बि‍हार तक का क्षेत्र उसे सौप दि‍या । मलि‍क उसशर्क ने जौनपुर को राजधानी बनाया और इटावा से बंगाल तक तथा वि‍न्‍धयाचल से नेपाल तक अपना प्रभुत्‍व स्‍थापि‍त कर लि‍या। शर्की वंश के संस्‍थापक मलि‍क उसशर्क की मृत्‍यु 1398 ई0 में हो गयी। जौनपुर की गद्दी पर उसका दत्‍तक पुत्र सैयद मुबारकशाह बैठा। उसके बाद उसका छोटा भाई इब्राहि‍मशाह गद्दी पर बैठा। इब्राहि‍मशाह नि‍पुण व कुशल शासक रहा। उसने हि‍न्‍दुओं के साथ सद् भाव की नीति‍ पर कार्य कि‍या।

शर्कीकाल में जौनपुर में अनेकों भव्‍य भवनों, मस्‍जि‍दों व मकबरों का र्नि‍माण हुआ। फि‍रोजशाह ने 1393 ई0 में अटाला मस्‍जि‍द की नींव डाली थी, लेकि‍न 1408 ई0 में इब्राहि‍म शाह ने पूरा कि‍या। इब्राहि‍म शाह ने जामा मस्‍जि‍द एवं बड़ी मस्‍जि‍द का र्नि‍माण प्रारम्‍भ कराया, इसे हूसेन शाह ने पूरा कि‍या। शि‍क्षा, संस्‍क़ृति‍, संगीत, कला और साहि‍त्‍य के क्षेत्र में अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखने वाले जनपद जौनपुर में हि‍न्‍दू- मुस्‍लि‍म साम्‍प्रदायि‍क सद् भाव का जो अनूठा स्‍वरूप शर्कीकाल में वि‍द्यमान रहा है, उसकी गंध आज भी वि‍द्यमान है।

1484 ई0 से 1525 ई0 तक लोदी वंश का जौनपुर की गद्दी पर आधि‍पत्‍य रहा है। 1526 ई0 में दि‍ल्‍ली पर बाबर ने आक्रमण कर दि‍या और पानीपत के मैदान में इब्राहि‍म लोदी को परास्‍त कर मार डाला। जौनपुर पर वि‍जय पाने के लि‍ये बाबर ने अपने पुत्र हुमायू को भेजा जि‍सने जौनपुर के शासक को परास्‍त कर दि‍या। 1556 ई0 में हुमायूं की मृत्‍यु हो गयी तो 18 वर्ष की अवस्‍था में उसका पुत्र जलालुद्दीन मोहम्‍मद अकबर गद्दी पर बैठा। 1567 ई0 में जब अली कुली खॉ ने वि‍द्रोह कर दि‍या तो अकबर ने स्‍वयं चढ़ाई कि‍या और युद्ध में अली कुली खॉ मारा गया। अकबर जौनपुर आया और यहॉ काफी दि‍नो तक नि‍वास कि‍या। तत्‍पश्‍चात सरदार मुनीम खॉ को शासक बनाकर वापस चला गया। अकबर के ही शासनकाल में शाही पुल जौनपुर का र्नि‍माण हुआ।

पौराणि‍क काल के बाद वि‍द्वतजन जौनपुर को चन्‍द्रगुप्‍त वि‍क्रमादि‍त्‍य के काल से जोड़ते हुये 'मनइच' तक लाते है और तथ्‍य है कि‍ यहॉ बौद्ध प्रभाव रहा है। भर एवं शोइरी, गूजर, प्रति‍हार, गहरवार भी अधि‍पति‍ रहे है। यहॉ मोहम्‍मद गजनवी के हटने के बाद 11 वीं सदी मोहम्‍मद गोरी ज्ञानचन्‍द संघर्ष में गोरी द्वारा जीत एवं अरूनी में खजाना भेजाना, 1321 ई0 में गयासुद्दीन तुगलक द्वारा अपने पुत्र जफर खॉ तुगलक की जौनपुर में नि‍युक्‍ति‍ उसको वर्तमान शहर के र्नि‍माण से जोड़ती है। डेढ़ शताब्‍दी तक मुगल सल्‍तनत का अंग रहने के बाद 1722 ई0 में जौनपुर अवध के नवाब को सौपा गया। 1775 ई0 से 1788 ई0 तक यह बनारस के अधीन रहा और बाद में रेजीडेन्‍ट डेकना के साथ रहा। 1818 ई0 में जौनपुर के अधीन आजमगढ़ को भी कर दि‍या गया, लेकि‍न 1822 ई0 एवं 1830 ई0 में वि‍भाजि‍त कर अलग कर दि‍या गया।